भारत को स्वतंत्र हुए 70 साल से भी ज्यादे हो गया. लेकिन गरीबी और बेरोजगारी आज भी देश की सबसे बड़ी दो समस्याएं बनी हुयी हैं. गरीबी का आलम यह है कि सरकार ८० करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए मजबूर को गयी है.
प्रस्तुत है वर्तमान में गरीबी के हालात और सरकारी नीतियों पर एक कविता. कविता पढ़ने के लिए लेख के ग्रीन टेक्स्ट को पढ़ें.
स्वतंत्रता के बाद देश के चहुंमुखी विकास के लिए पंच वर्षीय योजनाएं चलीं. जिनका उद्देश्य था नियोजित तरीके से देश का विकास करना. हर क्षेत्र में देश ने प्रगति किया भी. लेकिन हाल के कुछ वर्षों में विकास के नाम पर सरकार के द्वारा कोई ठोस काम नहीं किए गए. आम जनता के लिए तो निश्चय ही सरकारों ने कोई काम नहीं किया.
इसीलिए लगभग आठ नौ साल से सरकारें अपनी कुछ ऐसी उपलब्धियों को गिनाती हैं जिन्हें Measure नहीं किया जा सकता. उदाहरण के तौर पर भारत विश्व गुरु बन गया. सबसे Recent उपलब्धि है – भारत में अमृत काल चल रहा है. यह सब Terminology किस काम की है जनता के लिए जब वह आज भी गरीब और बेरोजगार है?
नीचे ग्रीन टेक्स्ट में प्रस्तुत है एक कविता. कविता के 4 छंद हैं. अगर आप काव्य टेक्स्ट को पढ़ना नहीं चाहते हैं तो यूट्यूब पर इसकी वीडियो देख सकते हैं.
आजकल भारत में अमृत काल चल रहा है
आजकल भारत में अमृत काल चल रहा है
140 करोड़ में से 80 करोड़ जन
5 किलो मुफत अन्न पर जी रहा है
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गरीबी, बेरोजगारी और असमानता तीव्र गति से बढ़ रही है
भारत सरकार के मंत्री नितिन गडकरी ने Publicly स्वीकार किया है कि भारत एक अमीर देश है. उन्होंने यह भी माना है कि भारत की जनता अमीर देश की गरीब है. “देश अमीर है जनता गरीब है” उन्हीं के द्वारा कहा हुआ वाक्य है. आरएसएस के होसबोले ने भी गडकरी जी की राय से सहमति व्यक्त की है. आम जनता का मानना है कि सरकारी नीतियां गरीबों और बेरोजगारों के पक्ष में नहीं हैं. इसलिए गरीबी की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है. आमजन सरकारी नीतियों के प्रति अपनी सहमति देता हुआ प्रतीत नहीं होता.
सरकार ऐसी नीतियां बना रही है
जिसे जनता स्वीकार नहीं कर रही है
कारण नीति नियति साफ़ नहीं सरकार की
कोई लाभ नहीं आम जन को हो रहा है
140 करोड़ में से 80 करोड़ जन
5 किलो मुफत अन्न पर जी रहा है
गांव एवं शहर दोनों गरीबी की मार झेल रहे हैं
आरएसएस के ने शहर और गांव में व्याप्त गरीबी पर चिंता व्यक्त किया है. एक वेबिनार में उन्होंने गरीबी को देश के सामने एक राक्षस जैसी चुनौती बताया. उन्होंने यह भी कहा कि इस दानव को ख़त्म करने की जरूरत है.होसबोले साहब ने गरीबी और बेरोजगारी पर आंकड़ों के साथ बात किया. आय में असमानता पर भी उन्होंने चिंता वक्त किया.
शहर गांव की गरीबी को होसबोले ने
स्पष्ट रूप से रेखांकित कर दिया है
विश्वगुरु डिजिटल इंडिया मेक इन इंडिया
जैसा जुमला जनता को धोखा दे रहा है
140 करोड़ में से 80 करोड़ जन
5 किलो मुफत अन्न पर जी रहा है
सरकार ने गरीबी और बेरोजगरी पर होसबोले के बयान से असहमति जताई
सरकार के एक मंत्री ने होसबोले के बयान से असहमति जताई. लेकिन गरीबी और बेरोजगारी का खंडन नहीं किया. केवल यह बताया कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट आयी है.
संघ भाजपा के बीच दरार गहरी हो रही है
संघ सरकार बीच दूरी बढ़ रही है
फटे पैंट की तुरपाई तो हो सकती है
फटे आसमां को चकती नहीं जोड़ पा रहा है
140 करोड़ में से 80 करोड़ जन
5 किलो मुफत अन्न पर जी रहा है