जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुयी भारत के निर्दोष प्रवासियों की पीड़ा को व्यक्त करने का विचार मेरे मन में आया. प्रवासियों की इस पीड़ा को मैंने A Poem On Covid 19 Lockdown in Hindi कविता के माध्यम से इस पोस्ट में व्यक्त किया है. लॉकडाउन पर यह कविता यह बताती है कि कैसे सरकार ने देश के प्रमुख शहरों में इन प्रवासी श्रमिकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया.
कविता का टेक्स्ट ग्रीन, पर्पल और रेड कलर में लिखा हुआ है. केवल कविता पढ़ने के लिए Centrally Aligned रंगीन टेक्स्ट को पढ़ें.
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A Poem On Covid 19 Lockdown | जनता कर्फ्यू पर कविता
यदि आप निम्न काव्य टेक्स्ट को पढ़ना नहीं चाहते हैं तो इसकी वीडियो देख सकते हैं.
किया न मदद गरीब की ये खुद घूमा संसार, जिनके बल सुख भोग रहा ये छोड़ा उन्हें मझधार
ये कामगारों भूखों मरो
ये कामगारों भूखों मरो
हवाई फ़क़ीर की ये बद्दुआ है
ये कामगारों भूखों मरो
जनता कर्फ्यू जब ये लगाया, शहरों में छायी वीरानी
कामगारों की गयी दिहाड़ी, दाल रोटी और पानी
छिना बसेरा तेरा, मालिक मकान ने घर से निकाला है
महल बनाने वालों बेघर रहो
ये कामगारों भूखों मरो
कर्फ्यू में सोशल डिस्टैन्सिंग, तब हो गयी बेमानी
जनता जब सड़कों पर उतरी, भरी भीड़ में मनी दिवाली
मौज मशाल जुलूस में नेता, अफसर भागीदार है
ये मेहनतकश तू रौशनी करो
ये कामगारों भूखों मरो
General Background Of The Poem On Lockdown: माली ने बगीचे की देखरेख नहीं किया
यदि माली अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में विफल रहता है, तो वह स्वयं उस महामारी का हिस्सा बन जाता है जो पौधों और फूलों को नष्ट कर देती है। ऐसा करके वह पूरे बगीचे को तबाह करने में मदद करता है.
अगर कोई तूफान या महामारी आती है और पौधों एवं नाजुक फूलों की देखभाल करने वाला माली उनकी परवाह नहीं करता है तो उसका परिणाम क्या होता है? क्या माली को उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ देना चाहिए? यदि हां, तो माली के रूप में उसके क्या कर्तव्य हैं?
मैं जिस तथ्य पर बल देना चाहता हूँ वह यह है कि भारत एक खूबसूरत बगीचे की तरह है जिसमें लोग यानि जनता बगीचे के फूल हैं. सरकार का मुखिया माली होता है. उसका कर्तव्य है कि वह समग्र रूप से लोगों और राष्ट्र की देखभाल करे. However, this gardener, the Head of The Government of India, failed to care for the migrants after he imposed Janata Curfew and Lockdown.
लाकडाउन जब किया ये लागू, जनता निकली सड़क पर
नहीं मिली जब कोई सवारी, ठानी फिर भी जाना है घर
सोशल डिस्टैन्सिंग रोड पे, भीड़ ने भुलाया है
ये मेहनतकश तू पैदल चलो
ये कामगारों भूखों मरो
देश बजाये ताली थाली, बढे उत्साह वैर्रियर्स का
तू भी बाजा क्यों न बजाये, थाली तेरी खाली है
तू खाली थाली बजाते रहो
ये कामगारों भूखों मरो
नहीं दिया बस ट्रेन का भाड़ा, पेट भरने को खाना
देश का तेरा खून पसीना, भरता रहा खजाना
तुमसे लिया है केवल, नहीं कुछ दिया है
ये कामगारों भूखों मरो
छिन गयीं प्रवासियों की नौकरियां और वे चल पड़े गांव की ओर
जैसा कि आप जानते हैं कि लॉकडाउन ने लोगों को अपने घरों में रहने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए मजबूर किया. साथ ही, सरकार ने उद्योगों और व्यवसायों को बंद करने का आदेश दिया. नतीजतन, श्रमिकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. चूंकि, श्रमिकों की नौकरी चली गई, इसलिए उन्हें भोजन और आवास की समस्याओं का सामना करना पड़ा.
आवास और भोजन के अभाव में प्रवासियों ने गांव की ओर किया पलायन
मकान मालिकों ने मजदूरों को उनके घरों से बेदखल कर दिया. ऐसे में उन्हें अपने गांवों का रुख करना पड़ा. गांव लौटना भी उनके लिए बहुत ही मुश्किल था क्योंकि जनता कर्फ्यू और बाद में लॉकडाउन के कारण बसें और ट्रेनें नहीं चल रही थीं. हालाँकि सरकार ने बाद में उनके संचालन की अनुमति दी, फिर भी गांव लौट रहे प्रवासी मजदूर उन पर सवार नहीं हो सके। जाहिर है, ऐसा केवल इसलिए था क्योंकि प्रवासियों के पास टिकट के भुगतान के लिए पैसे नहीं थे क्योंकि वे पहले ही अपनी नौकरी खो चुके थे।
इस प्रकार, प्रवासी श्रमिकों के पास अपने गाँव जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. उनका गांव जिस शहर में वे रह रहे थे उससे सैकड़ों किलोमीटर से लेकर हजार किलोमीटर से भी अधिक दूर था. इतनी लम्बी दूरी तय करने के लिए उन्होंने रिक्शा, साइकिल और ट्रक आदि जैसे परिवहन के अनौपचारिक साधनों का उपयोग किया.
धन्य है तेरी मेहनत तूने, देश निर्माण किया है
सबको छोड़ इसी को तुमने, आज पसंद किया है
दिया है तुमने उसको सत्ता, वो तेरा दुःख दाता है
ये कामगारों भूखों मरो
हवाई फ़क़ीर की ये बद्दुआ है
ये कामगारों भूखों मरो
जब तक ये सत्ता में रहेगा, दुःख ये तुमको देता रहेगा
तू इसकी जयकार करे, ये जुमलों की बौछार करेगा
तेरे भोलेपन पे तुमको, धोखा मिला है
हवाई फ़क़ीर की ये बद्दुआ है
ये कामगारों भूखों मरो
अपने गांवों की ओर लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रास्ते में बहुत तकलीफें हुईं. यहाँ तक कि कइयों ने अपनी जानें भी गंवा दी.
That is the background of the Poem On Covid 19 Lockdown.
यह पोस्ट 9 जून, 2020 को पहली बार इंग्लिश में पब्लिश किया गया था जिसे मैंने हिंदी में 16 मई, 2022 को पुनः प्रकाशित किया.
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