A Poem On Vote For Freebies In Hindi के माध्यम से मैंने इस तथ्य को आपके समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश किया है कि भारत देश की भोली भाली जनता नमक खाकर कभी नमक हरामी नहीं करती. जिसका खाती है उसी का बाज़ा बजाती है. नमक खाती है तो नमक का कर्ज भी वोट देकर उतार देती है.
नीचे ग्रीन कलर में लिखा टेक्स्ट कविता है.
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Poetry On Free Ration | मुफ्त अनाज, नमक, तेल और दाल पर कविता
भारत की गरीब जनता की चिंता प्रमुखतः परिवार के लिए भोजन जुटाने की होती है. अगर वह आश्वस्त हो जाए कि उसे सरकार की ओर से मुफ्त में भोजन यानि अनाज और नमक मिल जायेगा तो उसकी यह चिंता दूर हो जाती है.
इस पोस्ट में प्रस्तुत कविता को मैंने ऊपर दी हुयी एक वीडियो (पार्ट 3) के अलावा पार्ट 1 और पार्ट 2 वीडियोस के माध्यम से यूट्यूब पर पब्लिश किया है.
A Poem On Vote For Freebies | मुफ्तखोरी से संतुष्ट मतदाताओं पर कविता
कविता का टेक्स्ट इस प्रकार है:
जनता हो गयी परजीवी न रोजगार चाहिए
जनता हो गयी परजीवी न रोजगार चाहिए
उसको मुफत में नमक और अनाज चाहिए
जनता हो गयी परजीवी न रोजगार चाहिए
उसको मुफत में नमक और अनाज चाहिए
दीन हीन साधनहीन वो अशिक्षित रहे
दीन हीन साधनहीन वो अशिक्षित रहे
भर पेट भोजन के लिए तरसती रहे
दीन हीन साधनहीन वो अशिक्षित रहे
भर पेट भोजन के लिए तरसती रहे
सोच भी न सके उसे घी अचार चाहिए
जनता हो गयी परजीवी न रोजगार चाहिए
गरीबी और अज्ञानता से त्रस्त जनता जीने के लिए जो आधारभूत भोजन चाहिए वही पाकर संतुस्ट हो जाती है. उसे स्वादिस्ट और पोस्टिक भोजन की आवश्यकता महसूस भी नहीं होती.
Poem On Vote For Free Ration
कविता जारी है जिसका टेक्स्ट निम्नवत है:
लोकतंत्र का परब यूँ ही आता रहे
लोकतंत्र का परब यूँ ही आता रहे
नमक तेल दाल अन्न मुफत मिलता रहे
लोकतंत्र का परब यूँ ही आता रहे
नमक तेल दाल अन्न मुफत मिलता रहे
जो खिलाये उसी का बाजा बजता रहे
जो खिलाये उसी का बाजा बजता रहे
खाये नमक का करज भी उतरता रहे
जो खिलाये उसी का बाजा बजता रहे
खाये नमक का करज भी उतरता रहे
वोटर को उसके वोट की बाजार चाहिए
जनता हो गयी परजीवी न रोजगार चाहिए
मुफ्त अन्न की लालच में वह अपने मताधिकार को भी एक तरह से गिरवी रख देती है. अर्थात अन्न के बदले में वह अपना वोट उस दल को दे देती है जिस दल की सरकार ने उसे मुफ्त अन्न दिया हो.
Poem On What Messiah Had Promised
2013 में मसीहा क्या बोला था? कविता का अगला भाग यह प्रकट करता है कि मसीहा के बड़े बड़े वादों के पीछे उसके कौन से इरादे छिपे हुए थे:
हाल क्या है मेरे दिल की न पूछो मित्रों
हाल क्या है मेरे दिल की न पूछो मित्रों
मुझको PM बना दो गज़ब ढाऊंगा
हाल क्या है मेरे दिल की न पूछो मित्रों
मुझको PM बना दो गज़ब ढाऊंगा
जब मैं जाऊँगा विदेश काला धन लाऊंगा
जब मैं जाऊँगा विदेश काला धन लाऊंगा
हर गरीब के खाते में 15 लाख देऊंगा
हाल क्या है मेरे दिल की न पूछो मित्रों
A Poem On Vote For Freebies In Hindi
लेकिन मसीहा के दिल में कुछ और ही था – जनता सदा गरीब रहे ताकि वह गरीबों का मसीहा बना रहे.
मसीहा बनने के लिए गरीब की गरीबी एक प्रधान आवश्यकता होती है. इसलिए गरीब को गरीब बनाये रखना अत्यंत आवश्यक हो जाता है. कविता की अगली पंक्तियाँ इसी भाव को व्यक्त करती हैं.
जब गरीबी रहेगी राशन तभी तो बंटेगी
जब गरीबी रहेगी राशन तभी तो बंटेगी
तभी तो दीन हीन की कहानी रहेगी
जब गरीबी रहेगी राशन तभी तो बंटेगी
तभी तो दीन हीन की कहानी रहेगी
जब अशिक्षा रहेगी बेरोजगारी रहेगी
जब अशिक्षा रहेगी बेरोजगारी रहेगी
तभी गरीबोद्धार की कहानी बनेगी
जब अशिक्षा रहेगी बेरोजगारी रहेगी
तभी गरीबोद्धार की कहानी बनेगी
दीन हीन को मसीहा दमदार चाहिए
जनता हो जाए परजीवी न रोजगार चाहिए
काव्य गायन की तर्ज
क्या आप गायन कला में रूचि रखते हैं? यदि हाँ, तो उपर्युक्त कविता को हिंदी मूवी अनोखी अदा की निम्न सुप्रसिद्ध गीत की तर्ज पर गए सकते हैं.
हाल क्या है दिलों का ना पूछो सनम
हाल क्या है दिलों का ना पूछो सनम
आप का मुस्कुराना गज़ब ढा गया