India's Coronavirus Lockdown Sparks Economic Catastrophe As Migrant Workers Leave Cities To Return To Their Villages

India’s Coronavirus Lockdown | लॉकडाउन से तबाही

How did India’s Coronavirus Lockdown bring a tsunami of economic problems in the big cities like Delhi, Bombay, Pune and other cities? इस सुनामी ने किसकी रोटी छीन ली? शहरों में किसने अपना घर खोया? क्या भारत कोरोना वायरस को खत्म करने के अपने प्रयासों के लिए विश्व गुरु के रूप में उभरेगा?

India's Coronavirus Lockdown Sparks Economic Catastrophe As Migrant Workers Leave Cities To Return To Their Villages
India’s Coronavirus Lockdown Sparks Economic Catastrophe As Migrant Workers Leave Cities To Return To Their Villages

इस अपडेट में, मैं उन आर्थिक समस्याओं की सुनामी के बारे में बात करूंगा, जिनका देश वर्तमान में सामना कर रहा है और जिनका सम्बन्ध सीधे भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना वायरस के खिलाफ छेड़ी गई जंग से है.

India’s Coronavirus Lockdown: PM मोदी ने किया घोषणा

24 मार्च, मंगलवार को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की, “आज रात 12 बजे से पूरे देश में तालाबंदी होने वाली है”. साथ ही, उन्होंने कहा कि देश को निश्चित रूप से लॉकडाउन की आर्थिक कीमत चुकानी पड़ेगी.


प्रधानमंत्री की इस घोषणा से दिल्ली जैसे बड़े शहरों में प्रवासी कामगारों, रेहड़ी-पटरी वालों, ठेका मजदूरों यानी अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोगों के लिए आर्थिक सुनामी आ गई। लॉकडाउन ने सार्वजनिक जीवन को कैसे प्रभावित किया?

A Review Of India’s Coronavirus Lockdown

मोदी जी ने लॉकडाउन की घोषणा करते हुए मुख्य रूप से दो बातें कही. प्रस्तुत है श्री मोदी की तालाबंदी की घोषणा की एक समीक्षा.

लॉकडाउन का मकसद लोगों को उनके घरों में बंद करना था

श्री मोदी ने यह व्यक्त किया कि लोग खुद को अपने घरों में बंद कर लें. यानी उन्हें अपने घरों से बाहर नहीं निकलना चाहिए. दूसरे शब्दों में उन्होंने लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को कहा.

लोगों को सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कहने में प्रधानमंत्री बहुत स्पष्ट और तार्किक थे. अगर हर कोई सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करता है, तो कोरोनावायरस संक्रमित व्यक्ति तक ही सीमित रहेगा और अन्य लोगों तक नहीं पहुंचेगा. इस प्रकार, वायरस के संचरण की श्रृंखला टूट जाएगी.

The Country would Have To Pay The Price Of Lockdown

दूसरी बात जिसकी ओर श्री मोदी ने इशारा किया, वह है देश की अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन का प्रतिकूल प्रभाव. जब कोई घर से बाहर नहीं आएगा तो देश में सभी तरह की आर्थिक गतिविधियां अपने आप बंद हो जाएंगी. श्री मोदी के शासन काल में पहले से ही चरमराने की ओर जा रही देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बेजान हो जाएगी. देश की अर्थव्यवस्था को लॉकडाउन से जोड़कर मोदी ने लोगों से कहा कि भविष्य में देश की अर्थव्यवस्था और खराब होगी और इसका कारण उनकी सरकार की आर्थिक नीतियां नहीं बल्कि कोरोना वायरस से पैदा हुई परिस्थितियां होंगी. देश की पहले से ही खराब अर्थव्यवस्था को सही ठहराने के लिए आज मोदी के पास अच्छा बहाना है.

India’s Coronavirus Lockdown: जनजीवन पर प्रभाव

तालाबंदी की घोषणा करते समय श्री नरेंद्र मोदी के दिमाग में यह नहीं आया कि दिल्ली जैसे महानगरों में रहने वाले प्रवासी कामगार जो दिहाड़ी पर काम करते हैं, वे दिन में कमाते हैं और तब शाम को अपने घर में चूल्हा जलाते हैं. चूंकि वे कामगार तालाबंदी की घोषणा के बाद अपनी मजदूरी खो दी थी, उनके पास अगले महीने घर का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे.

प्रवासी श्रमिकों के पास अपनी Grocery का सामान खरीदने और घर का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे. इसलिए उनके पास शहर छोड़ अपने गांव वापस जाने के अलावा और कोई विकल्प. चूंकि मकान मालिकों को पता था कि ये मजदूर घर किराया नहीं दे सकते, इसलिए उन्होंने मजदूरों को घर खाली करने को कहा. इस प्रकार, लोगों को उनके घर में कैद करने के लिए भारत के कोरोनावायरस लॉकडाउन के पीछे श्री मोदी का मूल विचार व्यर्थ हो गया. इससे सोशल डिस्टेंसिंग भी अप्रासंगिक हो गई.

लॉकडाउन के बाद प्रवासी कामगारों को लगने लगा कि उनके जीवन पर दुखों का पहाड़ टूटने वाला है. उनके पास अपने गाँव लौटने के अलावा और कोई समस्या के समाधान का उपाय नहीं था.

तालाबंदी लागू करते हुए मोदी जी ने क्या कहा? “भारत को बचाने के लिए, भारत के प्रत्येक नागरिक को बचाने के लिए, आज रात 12 बजे से लोगों के घरों से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है।” मोदी जी ने लॉकडाउन लागू किया जो पूरी तरह से विफल हो गया. दरअसल, लॉकडाउन लगा ही नहीं क्योंकि प्रवासी श्रमिक अपने घरों से सड़कों पर निकल आए थे। हजारों लाखों लोगों की भारी भीड़ दिल्ली और अन्य शहरों की सड़कों पर निकलकर अपने गांवों की ओर चल पड़ी. जब लाखों प्रवासी कामगारों की भीड़ सड़क पर चल रही थी तो सोशल डिस्टेंसिंग का कोई मतलब नहीं रहा. अगर उस भीड़ में कोरोना वायरस से संक्रमित लोग होते तो जरा सोचिये इसके दूरगामी परिणाम क्या हुए होते.

जैसा कि आप जानते हैं कि महानगरों में इन प्रवासी श्रमिकों में से कई खुले आसमान के नीचे, फ्लाईओवर के नीचे, सड़कों और गंदे नालों के बगल में रहते हैं. उनके पास कोई घर नहीं है, वे पहले से ही घर से बाहर रहते हैं. इसलिए, घर में रहना या घर से बाहर रहना उनके लिए अप्रासंगिक था. लॉकडाउन ने प्रवासियों को अपने घरों तक सीमित रखने के मोदी के इरादे के बावजूद अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. पहले से ही बेघर इन लोगों को और कितना बेघर किया जा सकता था?

लॉकडाउन के बाद पुलिस और प्रशासन ने बेघर लोगों को शहर से बाहर निकालना शुरू कर दिया. तो, अगर ये लोग अपने गांवों की ओर पलायन नहीं करते तो क्या करते?

लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सभी देशों के दो महीने के अध्ययन से जो निष्कर्ष निकला है और विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि कोरोना के खिलाफ प्रभावी लड़ाई का एकमात्र विकल्प सामाजिक दूरी है.

मैं आपसे सहमत हूं प्रधानमंत्री जी. विश्व के देशों के अध्ययन से जो निष्कर्ष निकले हैं, उन्हें हमें अपनाना चाहिए. लेकिन मेरा सवाल यह है कि इन दो महीनों में आपकी सरकार ने भारत में कोरोना वायरस के बारे में कोई अध्ययन क्यों नहीं किया? मोदी जी, आप, बीजेपी और आरएसएस भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए क्या कर रहे हैं? क्या अन्य देशों का अनुसरण करने से भारत वैश्विक गुरु बन जाएगा? या आप, भाजपा और आरएसएस केवल जनता को गुमराह करने के लिए भारत को विश्व गुरु बनाने की बात कहते हैं.

ऐसा लगता है कि इसके परिणामों की तैयारी किए बिना लॉकडाउन का आदेश देकर मोदी ने तुगलकी फरमान जारी किया है. भारत का कोरोनावायरस लॉकडाउन एक तुगलकी फरमान है, फिर भी न तो मोदी इसे वापस लेंगे और न ही लोग इसे वापस लेने की मांग करेंगे क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग सबसे बुनियादी, सबसे आवश्यक, सबसे प्रभावी और पहला कदम है.

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